Gulzar Poetry


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बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है,
मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है l

सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल,

यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है l

ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो,

क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है l

दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी,

यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है l

- गुलज़ार -

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