मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है l
सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल,
यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है l
ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो,
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है l
दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी,
यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है l
- गुलज़ार -